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ना जुर्माना ना जेल ना ही कोई और सजा

जब बिजली ईजाद नहीं हुई और सीलिंग फैन वग़ैरह की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

तब राजा रजवाड़े खास टाइप का कपड़ा कमरे में लटका कर उसकी डोरी कमरे के बाहर बांदे बांदियों के पैरों में बांध दिया करते थे, और बारी-बारी दिन रात अपने पैरों को हिलाते रहना उनका का काम होता था…

इस बात का ख़ास़ ख़याल रखा जाता था कि बांदे बांदियां कान से बहरे हों ताकि उनकी बातों को सुन ना सकें…

अंग्रेज़ों के ज़माने में ICS अधिकारी रहे “क़ुदरतुल्ला शहाब” अपनी किताब ‘शहाब नामा’ में लिखते हैं कि जब उन गुलामों को नींद लगती तो राजा या राज कर्मचारी कमरे से निकल कर पेट पर वह़शियों की तरह वार करते थे, जिससे गुलामों के पेट फटकर आतड़ियां तक बाहर आ जाती थीं और वह मर जाते थे…

ना जुर्माना ना जेल ना ही कोई और सजा…

आज कई लोग लोग अक्सर यह कहते है संविधान ने हमे क्या दिया है?

उन्हे ईन तस्वीरो से कुछ सिख लेनी चाहिए

यह उसी वक़्त की एक शर्मनाक तस्वीर है।

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