हरियाली तीज क्यों और कब से मनाई जाती है तथा इसका क्या इतिहास है ?

सावन का महीना आते ही त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है। सावन में ही हरतालिका तीज यानी हरियाली तीज (Hariyali Teej) भी मनाई जाती है। इस त्योहार को महिलाएं मनचाहा वर और सौभाग्य पाने के लिए मनाती हैं। ये त्योहार हर साल सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन मनाया जाता है। इसे हरियाली तीज नाम दिया गया है।

मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने कठोर तपस्या से भगवान शिव को पति के रूप में पाया था। लडकियांऔर विवाहित महिलाएं इस दिन उपवास रखती हैं। इस दिन श्रृंगार करने के बाद पेड़, नदी और जल के देवता वरुण की पूजा की जाती है।

(Hariyali Teej) क्यों मनाया जाता है ‘हरियाली तीज’ ?

कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती सैकड़ों साल की साधना के बाद भगवान शिव से मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया, फिर भी माता को पति के रूप में शिव मिल न सके।

माता पार्वती ने 108वीं बार जब जन्म लिया और हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में घोर तपस्या की। पुराणों की कथा के अनुसार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवान शिव देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए, साथ ही उन्हें अपनी पत्नी बनाने का वरदान दिया था।

इसे सबसे पहले गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती ने किया था, जिसके फलस्वरूप भगवान शंकर उन्हें पति के रूप में प्राप्त हुए। कुंवारी लड़कियां भी मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत रखकर माता पार्वती की पूजा करती हैं।

हरियाली तीज के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया। पार्वती के कहने पर शिव जी ने आशीर्वाद दिया कि जो भी कुंवारी कन्या इस व्रत को रखेगी, उसके विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होंगी।

हरियाली तीज (Hariyali Teej) कब मनाई जाती है ?

हरियाली तीज का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी चादर से आच्छादित होती है। उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं।

सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत काफी मायने रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों तरफ हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज (Hariyali Teej) कहते हैं।

इस मौके पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और खुशियां मनाती हैं। इसे हरितालिका तीज तथा श्रावण मास में बनाने के कारण लोग इसे श्रावणी तीज के नाम से भी जानते हैं।

हरियाली तीज का महत्त्व

हरियाली तीज सुहागिन महिलाओ के लिए काफी महत्व रखता है। क्योंकि वे इस दिन अपने सुहाग के लम्बी उम्र के लिए उपवास रखती है। यह व्रत बाकी अन्य व्रतों जैसे करवा चौथ से भी ज्यादा कठिन माना जाता है।

औरते इस दिन सोलह शृंगार से सज कर माँ पार्वती और शंकर भगवान की आराधना करती है एवं उनको श्रृंगार का भेट चढाती है। इस त्यौहार के एक अलग ही पूजन वृद्धि है, जिसका पालन करना आवश्यक है।

माँ पार्वती को भेट चढ़ाने के बाद हरियाली तीज (Hariyali Teej) की कथा सुनी जाती है और महिलाये पूजा करने के पश्चात अपनी जेठानी, सास और घर की बड़ी औरतो का आशीर्वाद लेती है।

इस व्रत को करने से महिलाये अपने गृहस्थ जीवन में सुख और समृद्धि को आमंत्रित करती है एवं भगवान से अपने पति की तरक्की के लिए आशीर्वाद मांगती है। इस व्रत के द्वारा सुहागिनों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है।

Hariyali Teej की मुख्य रस्में

इस उत्सव को हम मेंहदी रस्म भी कह सकते हैं। महिलाएं इस दिन अपने हाथों और पैरों में मेंहदी रचाती हैं। सुहागिन महिलाएं मेंहदी रचाने के बाद अपने कुल की बुजुर्ग महिलाओं से आशीर्वाद लेती हैं, ये परम्परा है। इस दिन झूला-झूलने का भी रिवाज है।

कहां मनाया जाता है ये पर्व ?

हरियाली तीज का उत्सव भारत के कई भागों में मनाया जाता है। लेकिन राजस्थान, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में इसकी खूब धूम देखने को मिलती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाते हैं।

हरियाली तीज (Hariyali Teej) पूजा की विधि

हरियाली तीज (Hariyali Teej) के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाओं के मायके से श्रृंगार का सामान और मिठाइयां आदि उनके ससुराल भेजा जाता है।

इस व्रत को करवा चौथ से भी कठिन व्रत बताया जाता है। हरियाली तीज के दिन महिलाएं सुबह स्नान करने के बाद सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं।

इसके बाद पूरी रात जागरण करके मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करती हैं। पूजा के अंत में तीज की कथा सुनी जाती है। इसके बाद ही महिलाएं अपना व्रत समाप्‍त करती हैं।

विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन स्त्रियों के मायके से श्रृंगार का सामान और मिठाइयां उनके ससुराल भेजी जाती है। (Hariyali Teej) हरियाली तीज के दिन महिलाएं सुबह घर के काम और स्नान करने के बाद सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं।

इसके बाद मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा होती है तथा पूजा के अंत में तीज की कथा सुनी जाती है। कथा के समापन पर महिलाएं मां गौरी से पति की लंबी उम्र की कामना करती है। इसके बाद घर में उत्सव मनाया जाता है और भजन व लोक नृत्य किए जाते है।

इस दिन हरे वस्त्र, हरी चुनरी, हरा लहरिया, हरा श्रृंगार, मेहंदी, झूला-झूलने का भी रिवाज है। जगह-जगह झूले पड़ते हैं। इस त्योहार में स्त्रियां हरी लहरिया न हो तो लाल, गुलाबी चुनरी में भी सजती हैं, गीत गाती हैं, मेंहदी लगाती हैं, श्रृंगार करती हैं, नाचती हैं।

हरियाली तीज (Hariyali Teej) के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं और माता पार्वती की सवारी बड़े धूमधाम से निकाली जाती है।

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