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यह सारा जीवन कितना खूबसूरत हो सकता है!

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रेलयात्रा के दौरान एक अनोखा मंजर देखने को मिला। एक महिला डिब्बे में काफी परेशान और तनाव में थी। रेलगाड़ी में खाने को जो भी मिल रहा था, वह हर चीज को खराब कहती जा रही थी। उसके शब्दों के तीखेपन से सब आहत हो रहे थे।

तभी एक युवक ने माहौल सुधारने की कोशिश की। उसने मौका पाकर झट से कहा,”अजी… मैम, आप कितने मुहावरेदार वाक्य बोलती हैं। सुनकर हैरत होती है कि आपको कितनी सारी कहावतें याद हैं।” ऐसा सुनते ही वह महिला बोली, “अहां… बेटे, मैं खूब पढ़ती हूं न मैं रिटायर हो गई हूं, मगर अब भी नियमित किताबें पढ़ती हूँ। ये लोकोक्तियां इसीलिए याद हैं।” युवक बोला, “अरे, आप तो पचास की भी नहीं लगतीं और आप कहती है कि रिटायर हो गई हैं।” उस महिला का मुखड़ा अब किसी आभा से दमक रहा था। अब किताबों पर ही एक से बढ़कर एक बात निकलती चली गई।

जरा सी बात जब एक नकारात्मक वातावरण को सकारात्मक कर सकती है तो जरा सोचिये कि सदैव ही सकारात्मक और उचित बात कही जाएगी तो कितना अच्छा होगा। बातें कितनी महत्वपूर्ण हो गई हैं, इसके लिए जर्मन मनोवैज्ञानिकों ने हाल ही में एक शोध किया था। इसके लिए उन्होंने सार्वजनिक रूप से काम करने वाले लोगों पर कुछ दिन खुफिया तौर पर रिसर्च की। ये लोग अपनी नींद की कमी, कोई आर्थिक परेशानी, हताशा और झगड़ा आदि से परे हटकर अपने मिलने वालों से सहज होकर बात किया करते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि इनके काम दुरुस्त रहे और ये लोग खुद भी मानसिक एवं शारीरिक रूप से मजबूत रहे। इसलिए एक नियम बना लेना चाहिए कि हर दिन दस या बीस वाक्य प्रेम से भरे हुए जरूर बोलने चाहिएं। इसके लिए मनोवैज्ञानिक एडलर ने चार दशक पहले ही एक उपाय बता दिया था कि हर रोज अपने चार या पांच परिचितों को फोन करके उनसे मजेदार बात या गपशप करो,

यह नहीं हो सके तो पड़ोसियों से बात करो। अगर यह भी न हो तो चौराहे, बाजार या हाट पर किसी से बात करो। अगर बोल ही नहीं सकते तो एक और अचूक इलाज है कि मानसिक चिट्ठी लिखो। उसमें अच्छी बातों का जिक्र करो अगर मन बार-बार बेचैन तथा नकारात्मक होता है तो सबसे पहले अपनी बातचीत के विषयों पर ही गौर करना चाहिए। हम किस तरह की बात बोलते हैं। हो सकता है कि कभी हालात ही ऐसे हों कि नकारात्मक ही बोलने पर मजबूर होना पड़ जाए।

एक बार अपने अनुयायियों के साथ स्वामी विवेकानंद कहीं जा रहे थे। मार्ग काफी असुविधाजनक था सब कुछ न कुछ शिकायत करने लगे, पर विवेकानंद ने उनसे कहा कि अगर विपरीत हालात को झेलना ही है तो हंसी-खुशी से झेलो। आप लोग अपने खूब मजेदार किस्से सुनाओ। इसके बाद तो ऐसी गपशप हुई कि किसी को भी रास्ते का पता ही नहीं चला। दरअसल, मुंह से निकलने वाली यह रसीली बात एक जादुई अहसास पैदा करती है। मन एकदम फुर्ती से काम करता है। आनंददायक बातें तन को भी उत्साहित रखती हैं। बस, अपने बोलने में एक अनुशासन लाना है। भावुक मन को समझने और इलाज कर समझाने वाले चिकित्सक भी सबसे पहले यही सलाह देते हैं. कि अच्छा सोचो और अच्छी बातें करो। कुछ दिन बाद बगैर दवाई के ही सामान्य हो जाओगे। एक दार्शनिक ने कहा भी है कि अगर आपके पास उचित विचार, उचित बात और उचित सोच हो तो यह सारा जीवन आपके लिए बहुत ही खूबसूरत हो सकता है।

खुला आकाश

अगर आपके पास उचित विचार उचित बात और उचित सोच हो तो यह सारा जीवन आपके लिए बहुत ही खूबसूरत हो सकता है।

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